प्रतीक झा 'ओप्पी' - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)
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गीता और ओपेनहाइमर - लेख - प्रतीक झा 'ओप्पी' | भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रति ओपेनहाइमर का आदर और वर्तमान सन्दर्भ
गीता और ओपेनहाइमर - लेख - प्रतीक झा 'ओप्पी' | भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रति ओपेनहाइमर का आदर और वर्तमान सन्दर्भ
बुधवार, नवंबर 13, 2024
भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति दुनिया में अपने अद्वितीय दर्शन, सहिष्णुता और आध्यात्मिकता के लिए जानी जाती है। यहाँ की श्रीमद्भगवद् गीता, योग और वेदान्त की परम्परा, कर्म और धर्म के सिद्धांत तथा विविधता में एकता का संदेश पूरी दुनिया को प्रेरित करता है।
भारतीय ज्ञान परम्परा को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत करने में कई विदेशी विचारकों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उनमें से कुछ प्रमुख विचारक हैं: रॉबर्ट ओपेनहाइमर, मैक्स मूलर, अल्बर्ट श्वाइट्ज़र, हेनरी डेविड थोरो और कार्ल युंग। इनमें सबसे प्रमुख रॉबर्ट ओपेनहाइमर रहे है, जिन्होंने दुनिया के सामने श्रीमद्भगवद् गीता की प्रासंगिकता और उपयोगिता को बताया।
जब ओपेनहाइमर परमाणु बम का निर्माण कर रहे थे, तब वे नैतिकता और वैज्ञानिक कर्तव्य के गहरे संघर्ष में थे। उन्हें यह दुविधा थी कि परमाणु बम का निर्माण मानवता के लिए विनाशकारी हो सकता है। इस गहन संघर्ष के दौरान उन्होंने श्रीमद्भगवद् गीता का सहारा लिया और उससे प्रेरणा पाई। टाइम पत्रिका के 1948 के अंक और विलियम एल. लॉरेंस की पुस्तक “मेन एंड एटम्स” में उल्लेख किया गया था ट्रिनिटी परीक्षण के दौरान ओपेनहाइमर ने गीता के श्लोक “कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।” का उच्चारण किया। जिससे उनके मन में व्याप्त संघर्ष और भय का संकेत उनके लोकप्रिय कथन- “मैं अब मृत्यु बन गया हूँ, संसार का विनाशक” में मिलता है ।
ओपेनहाइमर का गीता के प्रति यह झुकाव न केवल उनके व्यक्तिगत विकास का साधन बना, बल्कि उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण को एक दार्शनिक और नैतिक आधार भी प्रदान किया। वह गीता के अलावा कई अन्य संस्कृत ग्रंथों के श्लोकों से भी प्रभावित थे।
भारतीय दर्शन एवं संस्कृति ने उन्हें यह समझने में सहायता प्रदान किया कि विज्ञान का उद्देश्य केवल भौतिक खोजों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उसके प्रभावों का मूल्यांकन नैतिकता, मानवता और आध्यात्मिक विकास के सन्दर्भ में भी होना चाहिए। हम देखते है कि शीत युद्ध के दौरान, विज्ञान और समाज पर ओपेनहाइमर का व्यक्तित्व और विचारधारा भारतीय ज्ञान परम्परा से मेल खाता था।
ओपेनहाइमर का भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रति आदर, आधुनिक विज्ञान और दर्शन के समन्वय का एक प्रेरणादायक उदाहरण है। उन्होंने भारतीय दर्शन को पश्चिमी विज्ञान के सन्दर्भ में देखा और उसके गहरे अर्थों को आत्मसात किया। इस प्रकार उन्होंने भारत की महान ज्ञान-परम्परा और गीता की प्रासंगिकता को विश्व के सामने प्रस्तुत किया।
दुखद और चिंताजनक यह है कि आज के भारत में, जहाँ सरकार और शिक्षा प्रणाली के पास इसे प्रमुखता से प्रस्तुत करने का अवसर है, वहाँ भारतीय युवाओं को ओपेनहाइमर जैसे महान व्यक्तित्व के बारे में विस्तार से शिक्षित नहीं किया जाता। यदि उनके योगदान और गीता के प्रति उनके लगाव को भारतीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में, विशेष रूप से विज्ञान के साथ अन्य पाठ्यक्रमों में भी पढ़ाया जाए, तो युवाओं में अपनी महान संस्कृति और ज्ञान-परम्परा पर गर्व की भावना विकसित होगी और वे इससे प्रेरणा प्राप्त कर सकेंगे।
हम जानते हैं कि वर्तमान समय आधुनिक विज्ञान और तकनीकी का दौर है, जहाँ भौतिक सुविधाओं का विकास तो बहुत हुआ है, लेकिन उसी अनुपात में अपराध, भ्रष्टाचार, संस्कारों और नैतिक मूल्यों का हास भी बढ़ता जा रहा है। यह आज गम्भीर चिन्ता का विषय बन चुका है। इन समस्याओं के समाधान के लिए हमें आवश्यक है कि भारतीय युवाओं को गीता और उन महान विदेशी विचारकों से परिचित कराया जाए जो भारतीय ज्ञान परम्परा से प्रभावित रहें हैं।
जैसे ओपेनहाइमर ने गीता का अनुसरण कर अपनी दुविधाओं को दूर कर कर्तव्य के पथ पर अग्रसर होने का मार्ग चुना, वैसे ही भारतीय युवा भी गीता का अनुसरण कर अपने जीवन के संघर्षों का समाधान पा सकते हैं और मानवता तथा विश्व कल्याण में अपना योगदान दे सकते हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा के आदर्शों को पुनः जाग्रत करना न केवल हमें अपने अतीत से जोड़ता है, बल्कि एक सकारात्मक भविष्य के निर्माण में भी सहायक सिद्ध होता है।
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