जो सच सबको बताना चाहता हूँ - ग़ज़ल - अरशद रसूल बदायूनी

जो सच सबको बताना चाहता हूँ  - ग़ज़ल - अरशद रसूल बदायूनी | Ghazal - Jo Sach Sabko Batana Chahta Hoon - Arshad Rasool Badayuni
अरकानः मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 
तक़्तीः 1222  1222  122

जो सच सबको बताना चाहता हूँ
वही ख़ुद से छुपाना चाहता हूँ

तिरे ग़म की अमानत हैं जो आँसू
उन्हें मोती बनाना चाहता हूँ

मुहब्बत ही मुहब्बत हर तरफ़ हो
मैं वो दुनिया बनाना चाहता हूँ

तुम्हारे हुस्न के क़िस्से सुनाकर
मैं परियों को चिढ़ाना चाहता हूँ

रक़ीबों से अगर मिल जाए फ़ुर्सत
‘मैं तुमको याद आना चाहता हूँ’

इज़ाफ़ा हो रहा है दुश्मनों में
मैं अपना कद घटाना चाहता हूँ

रिवायत ने बचा रक्खी है तहज़ीब
मैं जिद्दत भूल जाना चाहता हूँ

जो हैं नफ़रत के पुजारी हैं उन्हें मैं
मुहब्बत से हराना चाहता हूँ

अरशद रसूल बदायूनी - बदायूँ (उत्तर प्रदेश)

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