अपूर्ण नव वर्ष - गीत - सुशील कुमार
रविवार, दिसंबर 29, 2024
किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं
है स्याह धुँध से भरी रात
ख़ुशियों की कोई नहीं बात
धरती अम्बर ये दसों दिशा
हर एक मुझे बस शांत दिखा
ना ऋतु वासंती आई है
वसुधा ना प्यास बुझाई है
हर ओर ठिठुरते जीव सभी
दिल में है किसी के हर्ष नहीं
किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं
है नहीं अभी अम्बर नीला
बच्चों का मन रंगीला
वसुधा से ना ख़ुशबू आई
प्रकृति भी अभी ना मुस्काई
ना फ़सल पकी है खेतों में
बस कटती रात है ज्यों त्यों में
चमन फूल है खिले नहीं
मधुकर में भी वो कर्ष नहीं
किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं
प्रस्फुटित नए अंकुर होंगे
नभ ओर पथिक प्रांकुर होंगे
बच्चे जब धूल उड़ाएँगे
बाबा होरियाँ सुनाएँगे
जब आएँगे राम संग भ्राता
होगा माता का जगराता
तब रंग गुलाल उड़ाएँगे
नव वर्ष सहर्ष मनाएँगे
मधु पवन अभी स्पर्श नहीं
किंचित मन में उत्कर्ष नहीं, ये हो सकता नव वर्ष नहीं
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर