अब फिर घिर आए बादल भी - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा

अब फिर घिर आए बादल भी - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा | Hindi Kavita - Ab Phir Ghir Aaye Baadal Bhi - Hemant Kumar Sharma
अब फिर घिर आए 
बादल भी,
उन यादों की बून्द लिए।

बहते हैं सावन भादों से,
देख रहे थे आँसू भी
जैसे पथ कईं रातों से।
इधर ख़ुशहाली ने 
जैसे नेत्र मून्द लिए।

सहने कोई सीमा नहीं,
अपने लिहाज़ करें क्यों
तीर कोई धीमा नहीं।
छाया भी ऐसे चमकी है
जैसे कोई धूप लिए।


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