अब फिर घिर आए बादल भी - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
सोमवार, दिसंबर 09, 2024
अब फिर घिर आए
बादल भी,
उन यादों की बून्द लिए।
बहते हैं सावन भादों से,
देख रहे थे आँसू भी
जैसे पथ कईं रातों से।
इधर ख़ुशहाली ने
जैसे नेत्र मून्द लिए।
सहने कोई सीमा नहीं,
अपने लिहाज़ करें क्यों
तीर कोई धीमा नहीं।
छाया भी ऐसे चमकी है
जैसे कोई धूप लिए।
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