गुज़रता हुआ साल - कविता - सोनू सागर 'रूस्तमपुरी'

गुज़रता हुआ साल - कविता - सोनू सागर 'रूस्तमपुरी' | New Year Kavita - Guzarta Huaa Saal. New Year Hindi Poetry | नववर्ष पर कविता
कब यूँ ही गुज़र गया साल पता ही नहीं चला।
कितने दु:खों और सुखों का चला सिलसिला॥
क्या हमने खोया है और क्या हमको है मिला।
अपनों को खोने का नासूर-सा बना जलजला॥

कहीं किसी के घर आई थी बहुत ख़ुशियाँ।
किसी को गुज़रते साल ने दुःखी था किया॥
कोई सुख और शान्ति से साल भर जिया।
किसी ने किसी से उधार लेकर नहीं दिया॥

गुज़रते हुए साल में किसी का चमन उजड़ा।
किसी को मिला अपना संबंधी, जो था बिछड़ा॥
कहीं भाइयों में आपसी शान्ति से परिवार खिला।
किसी को अपने किए का पश्चाताप था मिला॥

गुज़रता हुआ साल है ये कितना अनमोल।
किसी के मुख से निकले मीठे-मीठे बोल॥
किसी की नियत दूसरे की ख़ुशहाली से गई डोल।
अपने और परायों को अपना बनाने का नहीं कोई मोल॥

सोनू सागर 'रूस्तमपुरी' - अमरोहा (उत्तर प्रदेश)

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