अनमोल - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
इन चक्षुजल की वाणी है मौन - कविता - अनमोल
सोमवार, दिसंबर 16, 2024
इन चक्षुजल की वाणी है मौन
दबकर स्वर प्रवाहित जग में
बाँध दिया है बंधन मुझमें,
हूँ दूर कैसे, बस निज अश्रु
रहे सदा सह पग-पग में;
ले मृसढ़ प्राण से प्राणी प्रौढ़!
इस समर में धीर-अधीर
जग-पथ अगणित ज़ंजीर,
मृदुल हिय की शूल चुभन
अनुभूति पीर बस मन-मन;
हो जल अविरल से जीवन हौन!
देह के राग न हो तुम तक
प्राण-भाव अब-आगे-विगत,
घुली वेदना यह जल-जल
तम में भी हर्ष बाँधूँ पल-पल;
ले मौन में हिय-उदगार अमौन!
शब्द अभाव शुचि वक्ष-गीत
वाचाल-पोथी सब लिये जीत,
छिड़े न एकल को झंकार
है साथ विकल को करूण पुकार;
प्रणय शुष्क अधर-अधरों का शोण!
आकांक्षा-ईक्षा सब खेद छिपाए
सतत चक्षुजल ले बहता जाए,
यह मौन वाणी तुमको है दूतिका
झलक दिखाती रस भी औ दाह;
इस वाणी की थाह पाए कौन?
इन चक्षुजल की वाणी है मौन!
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर