इन चक्षुजल की वाणी है मौन - कविता - अनमोल

इन चक्षुजल की वाणी है मौन - कविता - अनमोल | Hindi Kavita - In Chakshujal Ki Vaani Hai Maun - Anmol
इन चक्षुजल की वाणी है मौन

दबकर स्वर प्रवाहित जग में
बाँध दिया है बंधन मुझमें,
हूँ दूर कैसे, बस निज अश्रु
रहे सदा सह पग-पग में;
ले मृसढ़ प्राण से प्राणी प्रौढ़!

इस समर में धीर-अधीर
जग-पथ अगणित ज़ंजीर,
मृदुल हिय की शूल चुभन
अनुभूति पीर बस मन-मन;
हो जल अविरल से जीवन हौन!

देह के राग न हो तुम तक
प्राण-भाव अब-आगे-विगत,
घुली वेदना यह जल-जल
तम में भी हर्ष बाँधूँ पल-पल;
ले मौन में हिय-उदगार अमौन!

शब्द अभाव शुचि वक्ष-गीत
वाचाल-पोथी सब लिये जीत,
छिड़े न एकल को झंकार
है साथ विकल को करूण पुकार;
प्रणय शुष्क अधर-अधरों का शोण!

आकांक्षा-ईक्षा सब खेद छिपाए
सतत चक्षुजल ले बहता जाए,
यह मौन वाणी तुमको है दूतिका
झलक दिखाती रस भी औ दाह;
इस वाणी की थाह पाए कौन?

इन चक्षुजल की वाणी है मौन!


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