जब ख़ुद से मेरी पहचान हो - कविता - अनुराधा सिंह

जब ख़ुद से मेरी पहचान हो - कविता - अनुराधा सिंह | Hindi Kavita - Jab Khud Se Meri Pehchaan Ho - Anuradha Singh | आत्म पर कविता
अतीत की गहराइयों में
ज़िंदगी के गोपनीय चेहरों को चूम
न जाने कितने सवालों के जवाब पूछे
नश्वर शरीर के नश्वर रिश्ते
ज़िंदगी भी ख़्वाबों के ख़्यालों में
कभी पूजा या अनुष्ठान
दान दक्षिणा से भी संभालना चाहा
मानस पटल पर एक कौतूहल पाया
ऐ ख़ुदा तू है तो दयालु वो रहमत बख़्शी
मै इस इंतज़ार में हूँ जब ख़ुद से मेरी पहचान हो।

अनुराधा सिंह - नवी मुंबई (महाराष्ट्र)

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