कई रास्ते - कविता - प्रवीन 'पथिक'

कई रास्ते - कविता - प्रवीन 'पथिक' | Hindi Kavita - Kaee Raaste - Praveen Pathik
कई रास्ते फूटते हैं;
जीवन के उत्स से।
कहीं कोयल मधुर राग छेड़ती है,
तो कहीं घुप्प अंधेरा।
कहीं झरनों का सुंदर संगीत है;
तो कहीं झिंगुरों की कर्ण भेदी स्वर।
इन सबके मध्य से–
गुज़रना पड़ता है एक आदमी को।
एक नदी!
जो निरंतर प्रवाहित हो;
बहती है अपनी धुन में।
और सागर में मिलकर
खो देती अपना अस्तित्व।
एक आदमी भी!
जीवन के रंगमंच पर
आजीवन अभिनय करता हुआ,
खो जाता है अतीत के पन्नों में।
जहाॅं उसकी स्मृति
शेष रह जाती है।
या रह जाती तो
बस! एक धुँधली छाया;
जो जीवन के अंतिम क्षणों तक
कभी पीछा नहीं छोड़ती।


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