कशमकश - कविता - प्रवीन 'पथिक'
सोमवार, दिसंबर 09, 2024
अजीब कशमकश है यादों की!
जिनकी जड़ें गहरी होती हैं;
वह टूटता है गहराई से।
ऑंखों में तूफ़ान;
हृदय में विचारों की आँधी;
मन में कल्पनाओं का बवंडर;
और मुख में आक्रोश भरे शब्द
झकझोर देते हैं जीवन को।
एक घना अंधेरा!
गहराता जाता है मानस में,
जिसकी चीत्कार
अतीत के साए से होकर आती है।
दूर कहीं से,
व्यंग्यों की बौछार
हृदय का सीना चीर देती।
जो शूल टूट जाता हृदय में
उसकी पीड़ा असह्य होती है;
और व्यक्ति टूट जाता है स्वयं ही।
जिसकी चुभन सदा के लिए,
रह जाती है अंतः में।
और अंत में
बचते हैं ये दो शब्द–
निस्तब्धता और एकांत।
पूर्ण आस्तित्व के साथ
जीवंत और यथार्थ रूप में।
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