राहों का अकेलापन - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

राहों का अकेलापन - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव | Hindi Kavita - Raahon Ka Akelapan | अकेलापन पर कविता
आसमान को देखूँ,
पर रंग सभी धूमिल हैं,
धरती से पूछूँ तो
उत्तर बड़े निर्जीव हैं।

हवा की सरगम भी
अब शोर सी लगती है,
मन की हर परत पर
बस पीर सजग रहती है।

खिलखिलाहटों के पल,
स्मृतियों में छिप गए,
और उन यादों के संग
आँसू भी चिपक गए।

जीवन की इस गाथा में
कहीं उजाला बाक़ी नहीं,
हर क़दम पर घाव हैं,
पर मरहम कोई साथी नहीं।

क्या यह मेरी नियति है,
या जीवन का कोई छल?
हर प्रश्न का उत्तर बस
निःशब्द, रिक्त और विफल।

फिर भी इस वेदना में
जीने की क़सम खाई है,
दर्द को अपना साथी मान,
अकेले राह बनाई है।

चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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