रूशदा नाज़ - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
रुकना तेरा अंत नहीं है - कविता - रूशदा नाज़
गुरुवार, दिसंबर 12, 2024
सपने को उस ऊँचाइयों तक देखा था मैंने,
खग को उड़ते देखा था,
पंछियों की भाँति उड़ान भरना चाहते दूर तलक फिर,
निराशाओं ने मुझे ऐसा घेरा
भीतर की आवाज़ ने झकझोंरा
रुकना तेरा अंत नहीं हैं
चल उठ नई दिशा को हो लें
पतझड़ के मौसम बीत गए
शाखाओं पर नए पत्ते आए
सभी ख़ुशियों से भरे, ऊर्जावान है दिखते
अंधियारा चीरता हुआ सूर्य निकला
मेरे लिए उत्साह भरा सवेरा
जीवन में नया रंग भरा
निराशाओं पर लगाए पूर्ण विराम
भीतर की आवाज़ ने झकझोंरा
रुकना तेरा अंत नहीं है
चल उठ नई दिशा को हो लें
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