तराने बहुत है - कविता - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
सोमवार, दिसंबर 23, 2024
गीतों की बहारें मधुर तराने बहुत है,
बोल भावन से लोग मस्ताने बहुत हैं।
सुर लय ताल अफ़साने ये ज़िंदगी के,
बहती रसधार सावन सुहाने बहुत है।
ख़ुशियाँ बहारें बादल आने बहुत है,
बहती बयारे अधर मुस्कानें बहुत है।
दिल का तराना धड़कने गीत गाती,
भावों की लहरें यहाँ दीवाने बहुत है।
मौसम सुहाना पुष्प खिलाने बहुत है,
महफ़िल में हमें गीत सुनाने बहुत है।
महक जाएगा समाँ सारा गुलशन-सा,
मेहमान अभी हमको बुलाने बहुत है।
वादे ये कसमें हमको निभाने बहुत है,
मंच पे हमको भी शेर सुनाने बहुत है।
कविता का जादू इस क़दर है ज़माना,
शायरों की ग़ज़लें गीत तराने बहुत है।
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