वेदप्रकाश 'उत्सव' - दोहरीघाट (उत्तर प्रदेश)
उपेक्षित लोग - कविता - वेदप्रकाश 'उत्सव'
मंगलवार, दिसंबर 24, 2024
अनवरत करते प्रयत्न मात्र
चाहते प्रेम का अंश–मात्र
मधुवन की मधुशाला में
बस करतें है संतोष
हम उपेक्षित लोग।
चाहते अपेक्षाओं की न्यूनता
अंतः मन में द्वंद्व की शून्यता
हृदय की प्रयोगशाला में
निज करतें है प्रयोग
हम उपेक्षित लोग।
अंतः मन झकझोरता है
गिरता उठता है तोड़ता है
प्रत्यक्षदर्शी विश्व के सम्मुख
कैसे व्यक्त हो शोक
हम उपेक्षित लोग।
निर्जनता की गोद में सोए
व्यक्ति हँसे, आईना रोए
व्यवस्थित षणयंत्र को
सब कहतें हैं संयोग
हम उपेक्षित लोग।
फिर भी पुष्प ही सींचेंगे
बारिश में भीग जाएँगे,
रिश्तों की चुभन मालूम
हम काटें नहीं लगाएँगे,
उदार हृदय होने पर भी
करना पड़ता है अफ़सोस
हम उपेक्षित लोग।
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