उठो कवि - कविता - आनंद त्रिपाठी 'आतुर'

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फूलों की मकरंद है छाया हर्ष अपार
उठो कवि इस भोर में लिखो नवल शृंगार

लिखो नवल शृंगार प्रेम के इस उपवन में
हो कोई न द्वंद कभी इस चंचल मन में
अरुणोदय की झलक तुषार की कैसी माला
भ्रमर गीत यह मधुर गान है रस वाला

यही अवधि है बजें दिलों के तार
उठो कवि अब लिख दो नया शृंगार।

आनंद त्रिपाठी 'आतुर' - मऊगंज (मध्य प्रदेश)

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