झारखंड के माटी - खोरठा कविता - विनय तिवारी

झारखंड के माटी - खोरठा कविता - विनय तिवारी | Khortha Kavita - Jharkhand Ke Maatee - Vinay Tiwari | Khortha Poem. झारखंड पर खोरठा कविता
झारखंड के माटी दादा ,पूजे के समान रे,
झारखंड राइज हामर देसेक सान रे,
देसेक सान ऐ दादा, देसेक सान रे।
देसेक सान ऐ बहिन देसेक सान रे॥

पहार परबत नदी नालायं बोहइ हियां झरना,
कन कन में खनिज भोरल, माटिक तरे सोना,
रे माटिक तरे सोना।
देस बिदेसें हामर,
देस बिदेसें हामर झारखंड के नाम रे।
झारखंड के माटी दादा, पूजे के समान रे॥

कोयल कुहके मेंजुर नाचे हियांक बोन झारें,
गीत झूमइर अखड़ा हियाँ, आठो पहरे।
रे आठो पहरें
गावँ घार अँगना हियां लागे सोहान रे।
झारखंड के माटी दादा, पूजे के समान रे॥

केते केते सहीद भेला, हियांक बेटा बेटी,
सहीदेकर रकते भींजल झारखंडेक माटी,
रे झारखंडेक माटी।
झारखंडेक मान नॉय,
झारखंडेक मान नॉय करिहा अपमान रे।
झारखंडेक माटी दादा पूजे के समान रे॥

हाँथ जोइड कहइ दादा विनय तिवारी,
झारखंडेक माटी के महिमा बड़ी भारी,
रे महिमा बड़ी भारी।
झारखंड के माटी हामर,
झारखंड के माटी हामर मायें के समान रे।
झारखंड के माटी दादा, पूजे के समान रे॥

विनय तिवारी - कतरासगढ़, धनबाद (झारखंड)

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