मिटे नायं दिहा माटिक मान - खोरठा कविता - विनय तिवारी

मिटे नायं दिहा माटिक मान - खोरठा कविता - विनय तिवारी | Khortha Kavita - Mite Naayen Dihaa Maatik Maan - Vinay Tiwari | Khortha Poem
जखन हाम होसेक दुनियाएं
डेग राखल हलों
तखनी से तोर नारा, पोस्टर बैनर
मीटिंग सिटिंग देख हलों
आपन माटी, आपन भासा, आपन संस्कृति,आपन राइज
के जे आइग लागल हल
सय आंगीं हामहुं जरो हलों।
आंधे-मुंधें पुलिसे पिटल
कते बम गोली चलल
हामहुं जान बचवेक फेरायं तोहनीं संग
बोन बाटें दौड़-हेलों।
कते लोक जेल गेला
कते लोक जान देला
सेय सोब के घार जाय
आँखिक लोर पोछों हलों।
रहत नायं दुखेक दिन
डांढ़ा सोभिन एके ठिन
जाइके सोभेक घारे-घारे
कते सोब के बुझवो हलों।
लागल रहा, जागल रहा
के नारा दे हलों
विनय तिवारी के गीत झूमइर
मीटिंग-सिटिंगें सुन हलों
सोब लोकेक साथ मिलल
नोतन आपन ठांव भेल
खुसिक मारीं आधा रातीं
मांदइर लेय के नाचल हलों।
इयाद राखिहें उलगुलान
मिटे नायं दिहा माटिक मान
मायं माटी मानुस ख़ातिर
आपन सोब छोडल हलों।
         
विनय तिवारी - कतरासगढ़, धनबाद (झारखंड)

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