राष्ट्रनायक अटल बिहारी वाजपेयी जी - लेख - नृपेंद्र शर्मा 'सागर'

राष्ट्रनायक अटल बिहारी वाजपेयी जी - लेख - नृपेंद्र शर्मा 'सागर' | Lekh - Rashtranayak Atal Bihari Vajpayee
भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह भारत रत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को श्रीमती कृष्णा एवं कृष्ण बिहारी वाजपेयी जी के घर हुआ था।
आपके पिता स्वर्गीय कृष्ण बिहारी वाजपेयी जी ग्वालियर में शिक्षक थे एवं हिंदी व ब्रज भाषा के सिद्धहस्त कवि भी थे अतः कवि के नैसर्गिक गुण अटल जी में जन्मजात ही थे, किशोरावस्था से ही अटल जी कविताएँ लिखने लगे थे।
आप हिंदी कवि, पत्रकार एवं प्रखर वक्ता थे। अटल जी भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे और 1968 से 73 तक अध्यक्ष भी रहे।
राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन जैसे राष्ट्र भावना से ओतप्रोत पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक भी रहे।
अटल जी तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने, मोरारजी देसाई की सरकार में अटल जी विदेश मंत्री भी रहे।
अटल जी हमारे स्वतंत्र भारत के दसवें प्रधानमंत्री बने, तीसरी बार जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तब इसमें 13 पार्टियाँ शामिल थीं। इस खींचतान भरी सरकार को सफलता से चलाते हुए अटल जी ने बड़ी ही गोपनीयता से अपने दूसरे कार्यकाल में ही मई 1998 में दो बार में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण करके देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाया और किसी भी देश की इंटेलिजेंस या उपकरणों को इसकी जानकारी तक ना हुई।
अटल जी अपनी कविता में कहते थे,
“हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा।”
और शायद इसी वाक्य को सत्य करते हुए उन्होंने किसी की भी परवाह ना करते हुए ये परीक्षण किए होंगे। प्रधानमंत्री के रूप में उनका पहला कार्यकाल मात्र 13 दिनों का ही रहा।
प्रधानमंत्री का दूसरा कार्यकाल संभालने के दौरान ही उन्होंने परमाणु परीक्षण किए। पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के लिए उन्होंने बस सेवा शुरू की और ख़ुद भी पाकिस्तान गए लेकिन बदले में पाकिस्तान ने अघोषित कारगिल का युद्ध भारत को भेंट में दिया जिसे बड़ी सूझबूझ और साहस के साथ अटल जी ने जीत के साथ समाप्त किया।
और शायद इसी को ध्यान में रखकर अटल जी ने अपनी कविता में कभी कहा होगा,
“ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।”
अटल जी सनातन के पक्षधर थे और अपने हिन्दू होने का गर्वित प्रमाण उन्होंने किशोरावस्था में ही यह कहकर दे दिया था कि, “हिन्दू तन-मन हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय।”
अटल जी की यूँ तो कई काव्यसंग्रह हैं जिनमें प्रमुख है ‘मेरी इक्यावन कविताएँ।’
अटल जी एकता की शक्ति के पक्षधर थे और अपने इसी गुण के चलते वह 13 पार्टियों से बनी सरकार को सुचारू रूप से चला पाए। अटल जी ने कहा था कि,
“बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।”
लेकिन लोगों ने कई बार उन्हें धोखे भी दिए और ऐसे ही एक धोखे ने उनकी पहली सरकार केवल 13 दिन में गिरा दी और तभी शायद उन्होंने कहा होगा,
“बेनक़ाब चेहरे हैं,
दाग़ बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ॥”
किन्तु अटल जी की एक ख़ूबी थी कि वह कुछ भी बोलने से पहले बहुत सोचते थे और नाप तौलकर बोलते थे। ज़्यादा बोलने से अच्छा वह चुप रहना ही समझते थे और यही ख़ूबी उन्हें सबसे अलग बनाती थी। वह कहते थे,
“बिखरे नीड़,
विहँसे चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ।”
अटल जी जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने के पक्ष में भी नहीं थे इसपर उन्होंने कहा था कि, “पार्टी तोड़कर सत्ता मिलती है तो ऐसी सत्ता मैं चीमटे से भी छूना पसंद नहीं करुँगा।”
देश उनके लिए सत्ता से बहुत ऊपर था और यही कारण था कि विरोधी भी उनका सम्मान करते थे।
31 मई, 1996 को संसद में विश्वास मत के दौरान अटल जी ने एक भाषण देते हुए कहा था कि "देश आज संकटों से घिरा हुआ है। ये संकट हमने पैदा नहीं किया है। जब-जब कभी आवश्यकता पड़ी, संकटों के निराकरण में हमने उस समय की सरकार की मदद की। सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएँगी-जाएँगी, पार्टियाँ बनेंगी बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।" और लोकतंत्र को अमर रखने के लिए अटल जी कई बार विपक्षियों का भी समर्थन कर देते थे।
वह अपनी कविता में कहते थे,
“सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अँधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अन्तिम अस्त होती है।
दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते;
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।”
और उन्हें विश्वास था कि एक दिन उनके विचारों की जीत होगी, अटल जी हारकर भी कभी हार नहीं मानते थे उनका कहना था,
“भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें,
बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दिया जलाएँ”
अटल जी ने यक्ष प्रश्न शीर्षक से लिखते हुए कहा था,
“सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।”
और आगे उन्होंने इसका समाधान भी बताया था और न केवल बताया था बल्कि पोखरण में करके बजी दिखाया था कि,
“विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा।”
अटल जी की कविताओं पर गायक जगजीत सिंह जी ने एक एल्बम भी निकाला था ‘संवेदना’ जिसमें कुछ कविताओं को अटल जी ने इमरजेंसी पर लिखा था जैसे–
“झुलसा से जेठ मास सरद चाँदनी उदास सिसकी भरते सावन का अन्तर्घट रीत गया एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया।”
अटल जी जब तक जिए शान से जिए, हमेशा शीर्ष पर रहे और लोकप्रिय रहे। उन्हें मृत्यु का कभी भय नहीं था, अटल जी मृत्यु को अटल सत्य बताते थे, उनका कहना था कि,
“ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?”
और एक दिन 16 अगस्त 2018 को उनकी मौत से ठन ही गई और वे इस दुनिया से कूच कर गए।
उनकी अंतिम विदाई पर मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी थीं कि
“यूँ आज अटल का टल जाना क्या और नहीं टल सकता था।
क्या भारत निर्माण का सूत्रधार कुछ और नहीं रुक सकता था।

जिस से सब विपक्षी हारे थे वह आज समय से हार गया।
मौत को संगिनी बना कर वह जीवन दरिया के पार गया।

दे गया राष्ट्र को मज़बूती कारगिल विजय का महानायक।
कर गया राष्ट निर्माण नया वह अटल योजनाओं का दायक।

शत शत नमन करें उनको, नम अनायास होती आँखें।
हे अटल रहो तुम अटल सदा, देवों से अब करना बातें।”

आज अटल जी के जन्मशती के अवसर पर मैं इन शब्दों से उस महान आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ कि,
“वह अटल था, जब तक रहा टला नहीं अपने किरदार से।
शत्रु तक प्रसन्न हो जाते थे जिसके व्यवहार से।
भारत का नव निर्माण किया और राह दिखाकर चला गया।
इस बेमुरव्वत मतलबी ईर्ष्यालु संसार से।”

नृपेंद्र शर्मा 'सागर' - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

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