जाड़े के दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

जाड़े के दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार | Navgeet - Jaade Ke Din - Avinash Beohar. जाड़े के दिन पर नवगीत
हैं जाड़े के दिन
औ' ख़ूब प्यारी
लग रही धूप।

हैं तृप्त लगते
तालाब, कुँए, झील।
काला-काला कौआ
लगता वकील॥

बेचती चूड़ी-बिंदी
मनिहारी–
लग रही धूप।

ख़ुशबू की मेड़ में 
स्वप्न हैं ऊगे।
शाम हुई आहिस्ता
सूरज डूबे॥

है पालने में लल्ला
महतारी–
लग रही धूप।

करती है भोर
बबूल की मुखारी।
लगता है कुहरा
मौसम में तारी॥

आदमी को हर्षाती
उपकारी–
लग रही धूप।


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