जाड़े के दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
गुरुवार, दिसंबर 05, 2024
हैं जाड़े के दिन
औ' ख़ूब प्यारी
लग रही धूप।
हैं तृप्त लगते
तालाब, कुँए, झील।
काला-काला कौआ
लगता वकील॥
बेचती चूड़ी-बिंदी
मनिहारी–
लग रही धूप।
ख़ुशबू की मेड़ में
स्वप्न हैं ऊगे।
शाम हुई आहिस्ता
सूरज डूबे॥
है पालने में लल्ला
महतारी–
लग रही धूप।
करती है भोर
बबूल की मुखारी।
लगता है कुहरा
मौसम में तारी॥
आदमी को हर्षाती
उपकारी–
लग रही धूप।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर