मन का नाप - नवगीत - सुशील शर्मा

मन का नाप - नवगीत - सुशील शर्मा | Navgeet - Man Ka Naap - Sushil Sharma
तुमको अपना मन समझा था
पर तुम भी तो निकले
आस्तीन के साँप

विषधर चारों ओर घूमते
रहे फुसकते
और भभकते
कभी नहीं डर लगता था
साथ तुम्हारा पाकर तन मन
भोर उजाले
भ्रम ये पाले
तुम अपने हो
कह जगता था।
जीवन की आपा धापी में
इक सुकून था
साथ तुम्हारा
हृदय हमारा
मन ही मन करता रहता था
सदा तुम्हारा जाप।
थे शिकवे तो हमसे कहते
लड़ते भिड़ते
और तुनकते
अनबोले भी रह सकते थे
जब रिश्ता अपनापन का था
मन के झगड़े
मीठे कड़वे
अनुभव मन में सह सकते थे
पता नहीं था
इतना खोटा
इतना छोटा
रखे हो अंतस
अपने मन का नाप।

सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

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