निराकार साकार प्रभु - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
शुक्रवार, जनवरी 10, 2025
निराकार साकार प्रभु, गुण निर्गुण अस्तित्व।
भजे मनुज जिस रूप में, दिखे ईश व्यक्तित्व॥
लीलाधर लीला मधुर, सगुण रूप साकार।
नर नारी बहु रूप में, लेते हैं अवतार॥
निराकार परमात्मा, अन्तर्मन अनुभूत।
गाओ जिस भी रूप में, भक्ति प्रेम सम्पूत॥
ब्रह्म विष्णु शिव एक ही, हैं त्रिदेव अवतार।
सर्जन पालन सत्य जग, पापों का संहार॥
त्रिविध शक्ति माया जगत, विद्या वैभव शक्ति।
सरस्वती लक्ष्मी उमा, नवदुर्गा नवभक्ति॥
निर्गुण आलोकित हृदय, चारु रूप भगवान।
अच्युत नारायण जगत, शिव मंगल विधि मान॥
ज्ञान कर्म पथ अरुणिमा, योगक्षेम आलोक।
पद त्रिदेव भज ले मनुज, मिटे पाप तम शोक॥
गरुडासन वैकुण्ठ हरि, ब्रह्मलोक विधिलेख।
महादेव कैलाश में, भजो हृदय प्रभु देख॥
भक्ति प्रेम सेवा अपर, ख़ुशियाँ भरो उदास।
मीत बनो पर वेदना, समझें हरि का वास॥
सदाचार जीवन चरित, संस्कार सद्रीति।
मातृभूमि अनुरक्ति मन, समझें ईश्वर प्रीत॥
रखो ईश विश्वास मन, विविध रूप हरिनाम।
कर्मयोग सद्ज्ञान से, हरि दर्शन अभिराम॥
शील त्याग गुण कर्म से, मिले भक्ति अनुरक्ति।
परहित पौरुष हरि मिले, तज भौतिक आशक्ति॥
निराकार परब्रह्म प्रभु, करो मूर्त साकार।
शरणागतवत्सल प्रभो, कर भवसागर पार॥
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