आओ कुल्हड़ में चाय पीते हैं - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त

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आओ कुल्हड़ में चाय पीते हैं
चन्द लम्हें सुकूँ के जीते हैं

क्या बताएँ ए दोस्त तेरे बिन
सारे लम्हात रीते-रीते हैं

रम औ' व्हिस्की तुम्हें मुबारक हो
हम तो सादा हैं चाय पीते हैं

ज़िंदगी इस क़दर हसीं भी नहीं
जैसी दिखलाके लोग जीते हैं

समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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