इस ज़िंदगानी में कहूँ इतना कमाया आज तक - ग़ज़ल - हरीश पटेल 'हर'

इस ज़िंदगानी में कहूँ इतना कमाया आज तक - ग़ज़ल - हरीश पटेल 'हर' | Ghazal - Harish Patel Har
अरकानः मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
तक़ती: 2212  2212  2212  2212
  
इस ज़िंदगानी में कहूँ इतना कमाया आज तक
जो भी लिखा हमने क़लम से है निभाया आज तक

मैं क्या बताऊँ कश्मकश में चैन से कब सो सका
हर रात को चद्दर बिछाने में बिताया आज तक

मशहूर होना है मुझे भी शेर-ए-ग़ालिब की तरह
पूरा मगर मिसरा कभी भी कर न पाया आज तक
 
दौड़े लहू में शायरी आसान ये इतना नहीं
इसके लिए हमने यहाँ ख़ुद को खपाया आज तक

जल को लिखा है जल, लिखा जो आग है वह आग ही
हमने क़लम से है नहीं कुछ भी छिपाया आज तक

है पारितोषिक और पदकों से सुशोभित आज वो
पकड़ें क़लम कैसे न ये, जो जान पाया आज तक
 
ख़ुद्दार फ़ितरत है रही बदनाम हैं हम इसलिए
फेंका हुआ सिक्का नहीं हमनें उठाया आज तक

हरीश पटेल 'हर' - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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