प्रमोद कुमार - गढ़वा (झारखण्ड)
आओ बैठो पल-दो-पल - गीत - प्रमोद कुमार
सोमवार, जनवरी 06, 2025
मेरा पहला प्यार तुम्हीं थे,
जीवन का आधार तुम्हीं थे,
चंपा-कुसुम-चमेली जैसी,
मधुमय रस-शृंगार तुम्हीं थे।
पर छोटी-सी बात को लेकर
जिस दिन से तुम रूठ गए,
राह भटका मैं मंज़िल भूला,
सब ख़्वाब सुनहरे टूट गए।
जीने की स्पर्धा में माना,
मैं हारा तुम जीत गए,
पर बोलो क्या लौट आएँगे
जो क्षण जीवन में बीत गए?
आओ फिर से जरिया ढूँढ़ें,
मस्ती में संग जी लेने का,
जो बीत गई सो बात गई,
छोड़ो बातें तकरार की।
आओ बैठो पल-दो-पल संग
बात करें कुछ प्यार की।
इतिहास के पन्ने पलटो,
प्रेम का दुश्मन रहा ज़माना,
लैला-मजनूँ, हीर-राँझा सम,
सबने सुना जग का ताना।
धैर्य हिम्मत के उर को देखो,
विपदा में जो जीना सीखे,
हालातों ने ज़ख़्म दिए जो,
वक्त-वक्त पर सीना सीखे।
क्या है जीवन की परिभाषा,
जीने वाला ही बतलाए,
पहियों पर सुख-दुख के बैठा,
प्रेम गीत जो गाता जाए।
बातें हज़ार जो एक मुख कहती,
पर-सुख से आहत यह दुनिया,
किस-किस का मुँह बंद करोगे,
छोड़ो चिन्ता संसार की।
आओ बैठो पल-दो-पल संग
बात करें कुछ प्यार की।
मैं बादल का अदना टुकड़ा,
उमड़ा-घुमड़ा नील गगन में,
तुम धरा की सौंधी ख़ुशबू,
घोले मदिरा मस्त पवन में।
कर्ण प्रिय अमृत-रस जैसा,
तुम कोयल की कूक निराली,
मन-कानन में रही विचरती,
चंचल हिरणी-सी मतवाली।
फिर ज़ुल्फ़ों में फेर दे अंगुली,
ढँक आँचल से सिर हमारा,
सुस्पर्श तुम्हारा पाकर,
फिर भूलूँ मैं यह जग सारा।
सफल कामना हो जाएगी,
मुझ जैसे दीवाने का,
साज सजा दे गर तुम फिर से,
पायल के झनकार की।
आओ बैठो पल-दो-पल संग
बात करें कुछ प्यार की।
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