विजय कुमार सुतेरी - लोहाघाट (उत्तराखंड)
अभय - कविता - विजय कुमार सुतेरी
मंगलवार, जनवरी 21, 2025
यह कविता महाकुंभ प्रयागराज में वर्तमान में युवाओं से लेकर हर भारतीय और सनातन संस्कृति का अनुकरण करने वालों की बीच आकर्षण के केंद्र बने आई॰ आई॰ टी॰ बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातक "अभय" के ऊपर लिखी गई है, उनके सनातन दर्शन की समझ और गूढ़ता को कविता के माध्यम से शब्दों में पिरोने का प्रयास किया गया है।
द्वंद लिए सौ मन मंदिर में
मुग्ध हंसी भावों को लेकर
जो चलते निष्काम जगत में
चैतन्य खोज ही लाते हैं।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।
संशय और बंधन से उठकर
काम, लोभ और मोह कुचलकर
कलि के क्लिष्ट कालचक्र में भी
जो धरम ध्वजा लहराते हैं।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।
घोर दंश और प्रतिकारों में
जो वैरागी बने सहज मन
इंद्रजीत सी आभा लेकर
चिरंजीव बन जाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।
लौकिक आडम्बर की जड़ता
भाव शून्य में अर्पण करते
जो श्लाघा की क्षुधा भुलाकर
परहित मंगल गाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।
जीव तत्व का दर्शन शिव में
जिन्हें मिला है अंतर्मन में
जगत बोध और अनुभव पाकर
जो तारतम्य तर जाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं॥
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