अपना हिंदोस्ताँ - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
रविवार, जनवरी 26, 2025
जिसकी माटी भी मलयज से कमतर नहीं,
देश जिससे यहाँ कोई बेहतर नहीं।
जिसके मस्तक पे हिमगिरि सुशोभित रहे,
जिसके चरणों को छूकर के सागर बहे।
जिसमें पर्वत हैं, नदियाँ हैं, जंगल भी हैं,
जितना है उष्ण, उतना ही शीतल भी है।
जिसके कण-कण में ईश्वर का आभास है,
पूरे संसार में जो बहुत ख़ास है।
जिसमें उजियारी पूनम, अंधेरी अमा,
है ये प्यारा चमन, अपना हिन्दोस्ताँ॥
जिसमें सीता भी हैं, जिसमें हैं राम भी,
जिसमें राधा भी हैं, जिसमें हैं श्याम भी।
जिसमें गौतम, महावीर का ज्ञान भी,
जिसमें दादू हैं, रैदास, रसखान भी।
जिसमें तुलसी हैं, नानक, कबीरा भी हैं।
जिसमें हैं सूर भी, जिसमें मीरा भी हैं।
जिसमें संतों की, गुरुओं की वाणी भी है।
देश की संस्कृति की कहानी भी है।
कोई होगा भला ऐसा भी गुलसिताँ?
है ये प्यारा चमन, अपना हिन्दोस्ताँ॥
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