बेचैनी - कविता - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'

बेचैनी - कविता - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श' | बेचैनी पर कविता। Hindi Poem on Restlessness. Bechaini Kavita - Amit Raj Shrivastava
यह बेचैनी क्या है?
अधूरी आकांक्षा?
या पूरी होने का भय?

मन की इस बेकली का अंत कहाँ?
शायद कहीं नहीं।
शायद यही उसका स्वरूप है—
एक निरंतर ज्वाला,
जो हर शून्य को आलोकित करती है,
पर स्वयं कभी शांत नहीं होती।

मन एक अज्ञात दिशा में भागता है,
जैसे कोई पवन, जो न उत्तर को जानता है, न दक्षिण को।
विचार आते हैं,
पर वे ठहरते नहीं,
जैसे नदी में पत्थरों पर फिसलते जल की धार।

यह बेचैनी एक प्रश्न नहीं,
बल्कि कई अनुत्तरित प्रश्नों का समुच्चय है।
जीवन की व्याख्या,
समझ से परे लगती है,
और सत्य—
सत्य तो जैसे कोई क्षितिज हो।

क्या मन को ठहराव चाहिए?
या वह इसी गति में स्वयं को पहचानता है?
आत्मा चुप है,
लेकिन विचार शोर करते हैं,
जैसे जंगली पक्षियों का झुंड
जो सहसा उड़ान भरता है।

इस दौड़ का अंत कहाँ है?
शायद वहाँ, जहाँ प्रश्नों की आवश्यकता नहीं रहती।
शायद वहाँ, जहाँ बेचैनी
सिर्फ़ मौन बन जाती है।


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