महेन्द्र 'अटकलपच्चू' - ललितपुर (उत्तर प्रदेश)
बेहतर प्रतिदिन - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'
शनिवार, जनवरी 04, 2025
बढ़ो और चमको
हो सके तो उन्नति लाओ
जीवन का पाठ निरन्तर स्मरण
दिलाता रहे,
हम चट्टान से खोदे गए हैं
आकार देने का काम शुरू हो चुका है
धीमा और दर्द भरा है।
ईश्वर एक शिल्पकार
कोई ग़लती नहीं करता
हम उसके शक्तिशाली हाथों में समर्पित रहें।
हो सकता है मार्ग धीमा हो,
पथरीला हो,
अपना धैर्य न खोएँ,
अंत महिमामय होगा।
एक आँख ऐसी है जो रात को सोती नहीं,
कान ऐसे हैं जो हर पल सुनते हैं,
एक बाँह ऐसी है जो कभी थकती नहीं,
एक प्रेम ऐसा है जो कभी समाप्त नहीं होता।
आप प्रतिदिन बेहतर होते जाएँगें॥
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