राजू वर्मा - अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
धर्मयुद्ध - कविता - राजू वर्मा
शनिवार, जनवरी 04, 2025
क्या धर्मयुद्ध मजबूरी थी,
हाँ धर्मयुद्ध मजबूरी थी,
हाँ धर्मयुद्ध मजबूरी थी।
अर्जुन ने भी यह सोचा होगा,
कई बार मन को रोका होगा,
पर कौरव कहाँ मानने वाले,
पग-पग बोते थे अंगारे,
लालाच में इस क़दर वो डूबे थे,
मर्यादा भी ले डूबे थे,
भरी सभा की लाज न की,
इज़्ज़त मर्यादा सब ताक पर थी।
फिर अर्जुन ने ये सोचा होगा,
अब धर्मयुद्ध लड़ना होगा,
अब धर्मयुद्ध लड़ना होगा।
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