हे भारत के अमर इन्दु! - कविता - राघवेंद्र सिंह | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर कविता

हे भारत के अमर इन्दु! - कविता - राघवेंद्र सिंह | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर कविता | Hindi Poem on Bharatendu Harishchandra
हे भारत के अमर इन्दु!
हिन्दी भाषा के युग-चारण।
साहित्य पुरोधा, राष्ट्र प्रेम,
आधुनिक गद्य के विस्तारण।

हो जनक आधुनिक हिन्दी के,
तुम पुनर्जागरण का संदेश।
तुमसे नाटक का सूत्रपात,
तुममे मौलिकता समावेश।

लिख दिया दुर्दशा भारत की,
कविवचनसुधा की संपादित।
बन कर ओजस्वी गद्यकार,
तुमसे ही बोलियाँ प्रतिपादित।

तुम ही अंधेर-नगरी का व्यंग्य,
तुम प्रेम-सरोवर, मधु-मुकुल।
तुमसे ही हिन्दी अमर हुई,
तुम प्रकृति-कुंज के हो अंशुल।

लिख नाटक, कविता राष्ट्र प्रेम,
अँग्रेजी का ही विरोध किया।
निज सूक्ष्म दृष्टि अरु चिंतन से,
हिन्दी पर नित ही शोध किया।

अति अल्प काल निज जीवन में,
हिन्दी भाषा से प्रणय किया।
बन युग-परिवर्तक हिन्दी के,
साहित्य जगत को अमर किया।


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