जातियों में बँटा हुआ देश - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'

जातियों में बँटा हुआ देश - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या' | Jaatiyon Mein Bantaa Hua Desh
जातियों में बँटा हुआ देश
गठ्ठर से अलग हुई
उन लकड़ियों जैसा है
जिन्हें कोई भी चाहे
तब तोड़ सकता है
बिना किसी परेशानी के।

लेकिन हरेक लकड़ी को गुमान है
अपनी-अपनी ताक़त पर
नहीं याद रहा उसे अपने पूर्वजों का इतिहास
जिन्हें गठ्ठर से अलग हो जाने के बाद
तोड़ दिया गया था
एक-एक करके।

मैं देख रहा हूँ आने वाला गृह युद्ध
जो तबाह कर देगा
लकड़ियों के अहंकार को
और साथ ही साथ उनके अस्तित्व को भी
यहाँ नज़र आएँगे तो सिर्फ़ और सिर्फ़
गठ्ठर से बिखरी हुई लकड़ियों के
टूटे और जले हुए अवशेष।


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