महाकुम्भ - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गुरुवार, जनवरी 16, 2025
महाकुम्भ का शुचि महापर्व आया
भक्ति सागर में खुद आज संगम नहाया,
श्रद्धालु जन की ग़ज़ब भीड़ लाया,
भक्ति सागर में ख़ुद आज संगम समाया।
महाकुम्भ की रीति है ये तो युग-युग पुरानी,
जिसका साक्षी स्वयं गंगा यमुना का पानी।
ये धरणि व्योम भी भक्ति रंग में नहाया,
साधु संतों ने भी कितने करतब दिखाया।
महाकुम्भ का शुचि महापर्व आया,
भक्तिसागर में ख़ुद आज संगम समाया।
महकने लगे राजपथ सज सुहाने,
विहग गा उठे मंजु मंजुल तराने।
लोग आए सभी भक्ति दीपक जलाने,
संगम की धारा में डुबकी लगाने।
कितनी अलौकिक प्रभू तेरी माया,
हर हर महादेव उदघोष छाया।
महाकुम्भ का शुचि महापर्व आया,
भक्ति सागर में ख़ुद आज संगम नहाया।
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