मोह मृत घोषित हुआ - कविता - राघवेंद्र सिंह
गुरुवार, जनवरी 23, 2025
व्यर्थ की चिंताओं का,
फिर से वरण क्यों कर रहे हो?
मोह मृत घोषित हुआ,
फिर से हरण क्यों कर रहे हो?
क्या तुम्हें यह ज्ञात है?
अब मेघ दुःख के सो चुके हैं।
अब नयन पीड़ा के पग को,
अश्रुओं से धो चुके हैं।
अब व्यथित सब याचनाओं,
को पुनः अवसर मिलेंगे।
मौन में हर उस प्रतिक्षित,
वेदना को स्वर मिलेंगे।
तुम यहाँ विद्रूप्ति का,
फिर अनुकरण क्यों कर रहे हो?
मोह मृत घोषित हुआ,
फिर से हरण क्यों कर रहे हो?
अब यहाँ हर एक नियति की,
भावना को गति मिलेगी।
मन मरुस्थल में प्रवाहित,
गीत को भी यति मिलेगी।
हर निरर्थक स्वप्न का,
सर्वत्र ही शृंगार होगा।
रिक्त-सी प्रस्तावना को,
फिर मिलन स्वीकार होगा।
तुम यहाँ विध्वंश का,
फिर अंकुरण क्यों कर रहे हो?
मोह मृत घोषित हुआ,
फिर से हरण क्यों कर रहे हो?
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