प्रार्थना - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू'

प्रार्थना - कविता - महेन्द्र 'अटकलपच्चू' | Hindi Kavita - Prarthana. Hindi Pray Poem, प्रार्थना पर कविता
स्वर्गीय पिता, मेरे हाथों को खोलिए
उदारता पूर्वक देने के लिए!
मेरी सहायता कीजिए
मैं हमेशा स्मरण रख सकूँ
"लेने से देना धन्य है!"
आपने कोई भी भली वस्तु,
हमसे रोक न रखी!
होने दे कि
मेरे हाथ देने में
फुर्तीले,
लेने में धीमे हों!
हे प्रभु,
मेरे हाथों को 
असहाय लोगों की
सहायता के लिए खोलिए!
न बनूँ
सलाह, सुझाव देने वाला,
जहाँ सहायता के लिए हाथ बढ़ाना चाहिए!
न बनूँ
धुँआ देती हुई बत्ती को
बुझाने वाला!
न करूँ
प्रतिष्ठा की परवाह
पीड़ित को छूने से!
हे प्रभु,
खोल दीजिए मेरे हाथों को
दीन दरिद्रों की सहायता के लिए!
न थकूँ 
कंगाल की सहायता से!
मैं माँगता हूँ,
बिना उलाहना देते हो
उदारता से!
तब मैं
उस दरिद्र को
कैसे डाँट सकता हूँ।
हे प्रभु!
मेरी सहायता कीजिए।

महेन्द्र 'अटकलपच्चू' - ललितपुर (उत्तर प्रदेश)

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