तुम्हारी तस्वीर - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
शुक्रवार, जनवरी 31, 2025
देखी जो मैंने तुम्हारी तस्वीर,
छलक उठा मन, हुआ अधीर।
मुख चंद्र-सा, नयन कजरारे,
जैसे हो फूलों के बीच सितारे।
अधरों पर मृदु मुस्कान खिले,
मधुप बन हृदय मेरा पास मिले।
भाल तुम्हारा ज्योति पुंज-सा,
झलके जिसमें प्रेम का अंश-सा।
केश तुम्हारे काले घने,
बिखरे बादल जैसे बने।
धवल तन की छवि कोमल,
ज्यों वर्षा की बूँदे निर्मल।
तस्वीर तुम्हारी देख जो बैठा,
चेतन मन में प्रेम सँजो बैठा।
हर रेखा में गहराई पाई,
प्रेम की भाषा सहज पढ़ाई।
तुमसे जुड़ी हर स्मृति प्यारी,
तस्वीर बन गई जीवन हमारी।
हर कोना इसका कहता यही,
तुम ही हो जीवन, तुम ही सही।
अब तो यही है अभिलाषा,
संग तुम्हारे बीते हर आशा।
चित्र तुम्हारा मन को छू जाए,
प्रेम हमारे को अमर बना जाए।
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