विनय तिवारी - कतरासगढ़, धनबाद (झारखंड)
एइ भात रे - खोरठा कविता - विनय तिवारी
गुरुवार, जनवरी 09, 2025
ने जाइत देखलों, ने पाँइत रे
ने दिन देखलों, ने राइत रे
हामें तोर लेल की की नॉय करलों
एय भात रे! एइ भात रे!!
काँटा अइसन छातीं लागल
कते लोकेक बात रे
कते लोकें भातेक बदल देला हामरा लाइत रे।
हामें तोर लेल...
हामें तोर लेल की की नॉय सहलों
एइ भात रे! ऐ भात रे!!
भातेक दायें आपनों खुइनें,
छोइड़ देला साथ रे
तोयं कइसन चीज लागें, बुइझ गेलों एइ भात रे
हामें तोर लेल...
हामें तोर लेल कहाँ नॉय ढपचलों
एइ भात रे! एइ भात रे!!
पेटेक जाला बड़ी जाला
पेटें माँगें भात रे
तोर बिना ने गोड़ चले
ने चले हाँथ रे
हामें तोर लेल...
हामें तोर लेल की की नॉय सुनलों
एइ भात रे! एइ भात रे!!
विनय तिवारी कहे
आपन दिलेक बात रे
तोर बिना बाँचा दाय
सुइन ले एइ भात रे
हामें तोर लेल...
हामें तोर लेल की की नॉय देखलों!
एइ भात रे! एइ भात रे!!
ने जाइत देखलों, ने पाइत रे
ने दिन देखलों, ने राइत रे
हामें तोर लेल की की नॉय करलों
एइ भात रे! एइ भात रे!!
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