पढ़ नुनू पढ़ रे - खोरठा कविता - विनय तिवारी

पढ़ नुनू पढ़ रे - खोरठा कविता - विनय तिवारी | Khortha Kavita - Padh Nunoo Padh Re - Vinay Tiwari | Khortha Poem
पढ़ नुनू पढ़ रे!
आपन भबिस गढ़ रे!
खाता-पोथी से नाता जोड़
मोबाइल देखे छोड़ रे
पढ़ नुनू पढ़ रे...

जे पढ़ल, आगु बढ़ल
जिनगिक टुंगरी-पहार चढ़ल।
सुख पावल, सनमान पावल
समाजें पहचान पावल!
लइछ लइके, ठाइन के
तोञ आगु बढ़ 
पढ़ नुनू पढ़ रे...

माॅंय-बाप के बड़ी हउ
तोर से आसा।
सहो हथ कते कसट
सुघरावेले दसा
माॅंय-बापेक सपुन के
ना दिहक तोइड़ रे
पढ़ नुनू पढ़ रे...

पढ़लें-लिखलें ज़रूर नुनू
मिलतो बेस काम 
रोदें माटी नाञ काटे हतो
चुवतो नायं देहीं घाम
भटकावे-बिलटावेक
डहर तोञ छोड़ रे
पढ़ नुनू पढ़ रे...

बिना पढ़ल मिलतो नाञ
उनइतिक तोराॅं डहर
पढ़ल्हीं तोञ गुचवे पारबें
गरीबिक बिकट ज़हर।
सुखेक संसार पावे ले
सिकछा से सहिया जोड़ रे
पढ़ नुनू पढ़ रे...
खाता-पोथी से नाता जोड़ रे..!

विनय तिवारी - कतरासगढ़, धनबाद (झारखंड)

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