बन ठन निकल चला मैं - नवगीत - पंकज देवांगन

बन ठन निकल चला मैं - नवगीत - पंकज देवांगन | Navgeet - Ban Than Nikal Chala Main - Pankaj Dewangan
बन ठन निकल चला मैं
आरज़ू को ले चला मैं
दोपहरी की धूप में
थका हारा गिर पड़ा मैं
बन ठन निकल चला मैं
ख़ुशियाँ की दो घड़ी है
फिर यह किसको क्या पड़ी है
देखो झाँक के दिल मेरा
यहाँ लहू से सना पड़ा है
तुम्हारी चाहत की चादर मैं
ओढ़ चला यहाँ से कब का
बन ठन निकल चला मैं
कारवाँ यहाँ किसको मिला
न तुम रही न तुम्हारा संग रहा
हसरतों की गठरी लाद चला मैं
बन ठन के निकल चला मैं

पंकज देवांगन - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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