ज़िम्मेदारी - संस्मरण - सुशील कुमार

ज़िम्मेदारी - संस्मरण - सुशील कुमार | Sansmaran - Zimmedari. ज़िम्मेदारी पर संस्मरण
एक बार की बात है, जब हमारे स्कूल में वार्षिक उत्सव का आयोजन किया गया। स्कूल के सारे विद्यार्थी ख़ुशी से झूम उठे। हमें भी बहुत ख़ुशी हुई। हमने अपने साथियों के साथ एक योजना बनाई की कार्यक्रम के दिन सभी लोग समय से पहले स्कूल आएँगे, और सबसे आगे वाली सीट पर बैठेंगे, जिससे कार्यक्रम का अधिक आनंद ले सकें।

धीरे-धीरे समय बीता और वार्षिकोत्सव का दिन आ गया। हम और हमारे सभी मित्र योजना अनुसार समय से पहले स्कूल पहुँच गए और हम लोगों ने अपनी सीटें सबसे आगे डालकर बैठ गए। ताकि कोई और आगे की सीट पर ना बैठ सके। कार्यक्रम की तैयारियाँ होने लगी। दोस्तों के साथ हम भी आगे वाली सीट पर बैठे थे। तभी अचानक वहाँ पर हमारे कक्षाध्यापक आ गए, जो हमें बहुत स्नेह देते थे, क्योंकि शायद उनकी नज़रों में मैं एक अच्छा छात्र था।

सर ने मुझे पास में बुलाया और कहा, "सुशील तुम यही अतिथि रूम में रहो, यहाँ जो भी आए उनको नाश्ता पानी करवाना है। और बिना पूछे यहाँ से जाना नहीं।"
मैं पहले तो बहुत ख़ुश हुआ, क्योंकि पहली बार कोई ज़िम्मेदारी का काम मिला था, और सोचा था कि जो लोग आएँगे उन्हें फटाफट नाश्ता करवा के कार्यक्रम स्थल पर चला जाऊँगा। लेकिन कार्यक्रम में सभी लोग एक साथ कहाँ आते हैं, एक जाता तो है तो दूसरा आ जाता है, इसी तरह धीरे-धीरे दो बज गए और लोगों का आना जाना थमने लगा। जब काफ़ी समय तक कोई नहीं आया तब सहमें हुए स्वर में मैंने सर से कहा, "सर अभी और कोई आएगा?"

सर मुस्कुराते हुए बोले, "हाँ! लेकिन वे देर से आएँगे। तुम चिंता मत करो, तुम जा सकते हो। तुमने बहुत अच्छे से अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है और सभी लोग तुम्हारी तारीफ़ कर रहे थे।"

उन शब्दों को सुनकर हमारी सारी थकान दूर हो गई और वहाँ से उत्सुकता के साथ कार्यक्रम स्थल की ओर चला गया। कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, सभी लोग अपने-अपने घर चले गए। हम भी अपने घर आ गए।

शाम को जब बिस्तर पर लेटा तो सोचने लगा कि ज़िम्मेदारी शब्द जितना आसान लगता है, उससे कई गुना मुश्किल है उसे निभा पाना।
हमारे मम्मी पापा और शिक्षक हमारे लिए कितनी मेहनत करते हैं। कितनी ज़िम्मेदारियों को निभाते है, और हम उन्हें ही पीठ पीछे कैसे अपशब्द बोल देते हैं।
उस दिन मुझे एहसास हुआ कि ज़िम्मेदारी केवल एक शब्द नहीं, बल्कि जीवन का अहम हिस्सा है। इसे निभाते हुए अपनी ख़ुशियों को भी क़ुर्बान करना पड़ता है, लेकिन वही सच्ची ज़िम्मेदारी होती है।


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