जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त

जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त | Ghazal - Jo Jagmag Meri Duniya Dikh Rahi Hai - Sameer Dwivedi Nitant Ghazal
जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है
तुम्हारे नूर की ही रौशनी है

भला बनने की कोशिश कीजिए मत
भलाई या बुराई कब छिपी है

जो बदले पैंतरा हर इक क़दम पर
उसी का नाम प्यारे ज़िन्दगी है

कुरेदेंगे अधिक सहलाएँगे कम
आज़ीज़ों की यही चारागरी है

मिला जो वक़्त वो उपयोग कर लो
ख़बर कल की न कोई आज की है

समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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