समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)
जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
शनिवार, फ़रवरी 22, 2025
जो जगमग मेरी दुनिया दिख रही है
तुम्हारे नूर की ही रौशनी है
भला दिखने की ये जद्दोजहद क्यों
भलाई या बुराई कब छिपी है
जो बदले पैंतरा हर इक क़दम पर
उसी का नाम प्यारे ज़िन्दगी है
कुरेदेंगे अधिक सहलाएँगे कम
आज़ीज़ों की यही चारागरी है
मिला जो वक़्त वो उपयोग कर लो
ख़बर कल की न कोई आज की है
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