नसीब अपना जला चुके हैं - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव

नसीब अपना जला चुके हैं - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव | Ghazal - Naseeb Apna Jala Chuke Hain | नसीब पर ग़ज़ल
नसीब अपना जला चुके हैं, चराग़ कोई बुझा न पाए
ग़मों का साया जो पड़ चुका है, वो अब कभी भी हटा न पाए

उदास आँखों में रौशनी थी, मगर वो कब से मिटी पड़ी है
यहाँ तो दिल की ख़लिश भी जानिब, किसी को अब ये बता न पाए

वो अश्क जो थे लबों पे ठहरे, बहा दिए तेरी याद ने सब
मगर ये तेरा ही हिज्र होगा, कि दर्द दिल से सिला न पाए

तेरी मोहब्बत का ये करिश्मा, कि ज़िन्दगी भी अधूरी लगती
जो हाल पूछा किसी ने जानिब, तो हम हँसे भी, छुपा न पाए


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos