बुद्धि विवेक सृजन की देवी - गीत - उमेश यादव
रविवार, फ़रवरी 02, 2025
बुद्धि विवेक सृजन की देवी, ज्ञान का विस्तार है।
प्रज्ञा माता, माँ गायत्री, आपकी जय जय कार है॥
नवयुग की अरुणोदय वेला,
नवल सृजन का शंख बजा है।
नूतन युग में नवल जागरण,
कलश ज्योति से जगत सजा है॥
वेला नव्य विहान प्रकाशित, सवितामय संसार है।
प्रज्ञा माता, माँ गायत्री, तेरी जय जय कार है॥
वीणा की झंकार अलौकिक,
गीत संगीत साहित्य मनभावन।
पीत पुष्प परिधान भी पीले,
भक्तिमय संसार सुपावन॥
साधक का समर्पण अर्चन, ज्ञान ज्योति उजियार है।
प्रज्ञा माता, माँ गायत्री, आपकी जय जय कार है॥
विहग विश्व में दिव्य गान गा,
नवयुग का आभाष दे रहे।
ज्योति कलश की दिव्य रश्मियाँ,
जग को नया प्रकाश दे रहे॥
परिवर्तन की दिव्य ज्योति से बदल रहा संसार है।
प्रज्ञा माता, माँ गायत्री, आपकी जय जय कार है॥
जन-जन के मन में बासन्ती,
उमंग और उल्लास छा रहा।
माँ की जनम शताब्दी आई,
चित भक्तिमय गान गा रहा॥
नवल सृजन का शंख बज गया, बासन्ती बहार है।
प्रज्ञा माता, माँ गायत्री, आपकी जय जय कार है॥
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर