प्रेम कोई व्यापार नहीं है - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

प्रेम कोई व्यापार नहीं है - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | Prem Geet - Prem Koi Vyaapaar Nahin Hai. प्रेम पर गीत
प्रेम कोई व्यापार नहीं है, अन्तर्मन का भावामृत है।
निर्मल शीतल गूंजित हियतल, आँखों में भाव सृजित है।
तन मन धन अर्पण जीवन पल, नव वसन्त मधुमास चमन है।
अनमोल अगम विभव प्रेम रस, यथा इष्ट हो प्रेम ग्रहण है।
क्षमा दया करुणार्द्र चरित रस, सप्तसिन्धु अविरल प्रवाह है।
गंगाजल सम पावन निर्मल अपनापन जलधार चाह है।
करे हृदय मृदुभाष सुधामय, निश्छल रिश्तों का संगम है।
राग द्वेष छल कपट विरत दिल प्रेमाञ्जलि उद्भास सुगम है।
चारु शब्द ढाई आखर स्वर भक्ति शक्ति हिय मधुर मिलन है।
मानवता उद्रेक मधुरतम कोमलता सम किसलय दल है।
प्रेमगंध वासन्तिक सुरभित नव उड़ान हिय नीलांचल है।
सत रंगों से सजा प्रेम दिल नव विहान आलोकित मन है।
अरुणिम आभान्वित मृदुता हिय, प्रकृति मनुज शृंगार चमन है।
प्रेम कोष नित सुलभ सरल जन लेन देन बिन मोल सुलभ है।
दीन धनी राजा जनता सब जित चाहे वे प्रेम विभव है।
बस में सब जग प्रेम पाश में अरिदल दारुण प्रेम विवश है।


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