आ गया वसन्त है - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'

आ गया वसन्त है - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश' | Vasant Kavita - Humne Dekhi Hain. वसन्त ऋतु पर कविता
नव कोपले हैं खिल उठी,
कोयल ने छेड़ा राग है।
नव कान्ति से शोभित हुआ,
हर खेत और हर बाग़ है।
अलसी के नीले फूलों से,
सज गई हैं धरती माँ।
सरसों के पीले फूलों ने,
शोभित किया सारा जहाँ।
हैं दृष्टिगोचर हर तरफ़,
गेहूँ की सुन्दर बालियाँ।
तितलियों-भँवरों से सजी,
वृक्षों की हर एक डालियाँ।
मदमस्त है अब हर कोई,
उल्लास की बयार से।
धरती करे अठखेलियाँ,
मधुमास की फुहार से।
‘देवेश’ इस आनन्द का,
अब नहीं कोई अन्त है।
सब हर्ष से स्वागत करें,
आ गया वसन्त है।

देवेश द्विवेदी 'देवेश' - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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