अनकहे शब्द - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी

अनकहे शब्द - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी | Hindi Kavita - Ankahe Shabd - Surendra Zinsi | अनकहे शब्द पर कविता
यह सच है,
ज़िंदगी तेज़ी से आगे बढ़ती है,
लेकिन इतनी तेज़ी से नहीं
कि मैं इसकी दौड़ में ख़ुद को खो दूँ।

अगर मेरी क़लम मुझे पुकारती है,
तो मुझे सुनना चाहिए।
मैं पन्नों को खाली नहीं रहने दूँगा।

अपनी भावनाओं को
अपने दिल के क़ब्रिस्तान में दफ़नाने के लिए
मैं ख़ुद के प्रति इतना क्रूर नहीं हो सकता।
चाहे व्यस्त सुबह हो या बेचैन रातें,
शब्दों को साँस देना मेरा अधिकार है।
मैं यही हूँ।

इस भागती-दौड़ती दुनिया में,
मुझे रुकना चाहिए,
एक या दो पल रुकना चाहिए,
और उन्हें कविता में पिरोना चाहिए।

अनकहे गए शब्द
हमेशा के लिए इंतज़ार नहीं करते।
वे फीके पड़ जाते हैं,
वे ग़ायब हो जाते हैं,
वे कभी वापस नहीं आते।

सुरेन्द्र जिन्सी - नई दिल्ली (दिल्ली)

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