प्रतीक झा 'ओप्पी' - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)
अशोक और ओपेनहाइमर - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
शनिवार, फ़रवरी 08, 2025
कौन कहता है अशोक पुरातन
हज़ारों वर्षों का वह वासी?
मैंने देखा उसे खड़ा हुआ
रेगिस्तान में 20वीं सदी का साथी।
जिसके आदेश पर तपते मरुस्थल में
ज्वालामुखी बन अग्नि फूटी
जैसे कलिंग की रणभूमि में
लहू से रक्तिम धरती डूबी।
एक ओर विज्ञान सम्राट
ओपेनहाइमर, विध्वंस का नायक
दूसरी ओर चक्रवर्ती अशोक
साम्राज्य का गौरवशाली नायक।
नागासाकी की चीख़ों में
ओपेनहाइमर का हृदय रोया
कलिंग की रक्तरंजित भूमि पर
अशोक का अंतरमन खोया।
जब पीड़ा ने हृदय झकझोरा
अहिंसा का दीप जलाया
अशोक ने धर्म अपनाया
ओपेनहाइमर ने शान्ति का स्वर सुनाया।
आज फिर वही बादल छाए
अस्त्र-शस्त्र चमक रहे हैं
अशोक-ओपेनहाइमर की पीड़ा
मानवता की आत्मा में धड़क रहे हैं।
काश पुनः जागे यह जग
शान्ति का मंत्र सुनाए
अशोक और ओपेनहाइमर का सपना
हमारे युग का आदर्श बन जाए।
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