भूलना - कविता - संजय राजभर 'समित'
शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2025
उम्र के हिसाब से
आदमी भूलने लगता है
ज़रूरी भी है
यह एक दवा है
जीवन के अंतिम पड़ाव पर
कुछ सुकून मिले
क्योंकि
इंसान फिर न लौट आने के पथ पर
गुम हो जाता है
वह जितना हल्का होगा
उतना ही उड़ सकेगा
उसे जब तक याद रहा
चिंतित रहा
अब असीम आनंद की सफ़र में।
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