भूलना - कविता - संजय राजभर 'समित'

भूलना - कविता - संजय राजभर 'समित' | Hindi Kavita - Bhulna - Sanjay Rajbhar Samit. भूलने पर कविता
उम्र के हिसाब से
आदमी भूलने लगता है
ज़रूरी भी है
यह एक दवा है
जीवन के अंतिम पड़ाव पर
कुछ सुकून मिले
क्योंकि
इंसान फिर न लौट आने के पथ पर
गुम हो जाता है
वह जितना हल्का होगा
उतना ही उड़ सकेगा
उसे जब तक याद रहा
चिंतित रहा
अब असीम आनंद की सफ़र में।


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos