चल! इम्तहान देते हैं - कविता - आलोक कौशिक
मंगलवार, फ़रवरी 18, 2025
भय को भगाकर
पंखों को फैला कर
हौसलों को उड़ान देते हैं
चल! इम्तहान देते हैं
तू नारी है या है नर
दिखा अपना हुनर
श्रेष्ठ को सम्मान देते हैं
चल! इम्तहान देते हैं
सत्य को पकड़
चुनौतियों से लड़
ख़ुद को पहचान देते हैं
चल! इम्तहान देते हैं
कर लें अपना कर्म
यही है हमारा धर्म
फल तो भगवान देते हैं
चल! इम्तहान देते हैं
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