डॉ॰ कुमार विनोद - बांसडीह, बलिया (उत्तर प्रदेश)
एहसास - कविता - डॉ॰ कुमार विनोद
सोमवार, फ़रवरी 17, 2025
एक बूढ़ी स्त्री ने
जब अपनी दवा की पर्ची के साथ
अपने बेटे के तरफ़
एक मुड़ा-तुड़ा नोट भी बढ़ाया
तो अहसास हुआ
कि ये दुनिया
वाक़ई बीमार है...!
और तब उसे उस बूढ़ी माँ के
साड़ी के कोने का अक्षय भण्डार वाले
नोट गठियाते
खूँटे का एहसास हुआ...
उसे अपने दादी के
खूँटे में बँधे
उलटे-पलटे
उन नोटों में
एक पूरा बैंक है
उसकी आर्थिक
सम्पन्नता,
सम्बन्धो की उष्मा
के साथ
आत्मस्वाभिमान
का भी
एहसास हुआ।
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