दिवाकर शर्मा 'ओम' - हरदोई (उत्तर प्रदेश)
घायल सिंह दहाड़ उठो - कविता - दिवाकर शर्मा 'ओम'
मंगलवार, फ़रवरी 11, 2025
अपनी मर्यादा में रहकर,
शोषण के घूटों को सहकर
प्रश्नों का प्रतुत्तर देने,
अपने हक़ को वापस लेने,
चिंगारी को ज्वाल बनाकर,
ख़ुद को कुंदन सा पिघलाकर,
साँसों को तूफ़ान बना लो,
शब्दों को तुम बान बना लो,
घावों को नासूर बना लो,
कंटक को तुम शूल बना लो,
सब ज़ुल्मों का बदला लेने को प्यारे चिंघाड़ उठो...
घायल सिंह दहाड़ उठो।
घायल सिंह दहाड़ उठो।
कब तक ज़ुल्म सहोगे तुम,
बिन बोले क्यों रहोगे तुम,
कब तक तूफ़ानों से डरोगे,
चुप रह कैसे बात करोगे,
अंतरमन में क्यों घुटते हो,
सच कहकर के क्यों झुकते हो,
सच बोले तो सीना तानों,
अपनी प्रतिभा को पहचानों,
आघातों पर आघात हो रहे,
फिर भी घोड़ा बेच सो रहे,
जब पथ की बाधा अपने हों,
धूमिल सारे सपने हों,
सब कुछ सच करने के कारण भीषण वन्णी प्रहार करो।
घायल सिंह दहाड़ उठो।
घायल सिंह दहाड़ उठो।
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